युद्ध की तैयारी! क्या है भारत की नेशनल मिलिट्री स्पेस पॉलिसी? इससे आर्मी को कैसे मिलेगी ताकत?

 क्या है 'नेशनल मिलिट्री स्पेस पॉलिसी'?

भारत सरकार द्वारा तैयार की जा रही यह नई पॉलिसी, सैन्य जरूरतों के अनुसार स्पेस टेक्नोलॉजी के उपयोग को दिशा देने के लिए बनाई जा रही है। इसका उद्देश्य है –

“सेना, इसरो और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच तालमेल बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना।”

मुख्य बिंदु:

  • भारतीय सेना को स्पेस से जुड़ी ताकत मिलेगी।
  • इसरो और रक्षा एजेंसियों के बीच एक साझा रणनीति बनेगी।
  • स्पेस वारफेयर की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, एक स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार होगा।
  • सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने बताया है कि यह पॉलिसी अगले 3 महीनों में तैयार हो जाएगी।

स्पेस डॉक्ट्रिन भी होगी लॉन्च – क्या है इसका मतलब?

जहां मिलिट्री स्पेस पॉलिसी एक व्यापक दिशा-निर्देश है, वहीं स्पेस डॉक्ट्रिन सीधे तौर पर भारत की सेना की रणनीति को परिभाषित करेगी।

स्पेस डॉक्ट्रिन के तहत:

  • आर्मी, नेवी और एयरफोर्स मिलकर अंतरिक्ष युद्ध की तैयारी करेंगी।
  • हर फोर्स की भूमिका स्पष्ट की जाएगी।
  • यह डॉक्ट्रिन ‘स्पेस में युद्ध कैसे लड़ा जाएगा’ का रोडमैप तैयार करेगी।

भविष्य के युद्ध और स्पेस की भूमिका

तकनीकी युग में, पारंपरिक युद्ध के साथ-साथ अब डिजिटल और स्पेस वारफेयर भी उतना ही महत्वपूर्ण हो चुका है।

आने वाले समय में:

  • दुश्मन के सैटेलाइट को मिसाइल से निशाना बनाना।
  • स्पेस कम्युनिकेशन को जाम करना।
  • अपने सैटेलाइट की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • ये सभी बातें भारत को मजबूती से सोचने पर मजबूर करती हैं कि हमें अपनी सेनाओं को स्पेस में भी सक्षम बनाना होगा।

डिफेंस स्पेस एजेंसी: भारत की अंतरिक्ष सुरक्षा की रीढ़

भारत ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के अधीन डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) का गठन किया है।

इस एजेंसी का मुख्य कार्य है –

  • सेना के तीनों अंगों के बीच स्पेस टेक्नोलॉजी का समन्वय,
  • सामरिक सैटेलाइट्स की सुरक्षा,
  • स्पेस वारफेयर में रणनीतिक योजना बनाना।

एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT): 

भारत की ताकत मार्च 2019 में भारत ने मिशन शक्ति के तहत एक एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण किया था।

इस मिशन में भारत ने एक लाइव सैटेलाइट को मिसाइल से मार गिराया था – जिससे यह साफ हो गया कि भारत के पास स्पेस डिफेंस की क्षमता है।

यह सफलता सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक संकेत भी था – कि भारत अब सिर्फ धरती पर ही नहीं, स्पेस में भी अपनी सुरक्षा के लिए सक्षम है।

सेना की तैयारी – स्टार्टअप्स से मिल रहा सपोर्ट:

जनरल अनिल चौहान ने बताया कि डिफेंस स्पेस एजेंसी ने हाल ही में तीन दिवसीय स्पेस एक्सरसाइज का आयोजन किया।

इस टेबल-टॉप वॉर गेम में:

सैटेलाइट सुरक्षा के सिमुलेशन, स्पेस कम्युनिकेशन की रक्षा, और अंतरिक्ष युद्ध की रणनीति की समीक्षा की गई।

इसरो और सेना के साथ-साथ भारतीय स्टार्टअप्स को भी इस अभ्यास में जोड़ा गया। इसका उद्देश्य है – देशी तकनीकों को बढ़ावा देना और नई खोज को रक्षा क्षेत्र से जोड़ना।

सेना और ISRO: 

अब एक मंच पर अब तक ISRO केवल नागरिक कार्यों तक सीमित माना जाता रहा है। लेकिन अब सेना के साथ मिलकर ISROसामरिक सैटेलाइट लॉन्च करेगा, स्पेस कम्युनिकेशन को मजबूत करेगा,और जरूरत पड़ने पर, अंतरिक्ष आधारित निगरानी प्रणाली (Surveillance System) भी तैयार करेगा।

इस साझेदारी से सेना को:

रियल टाइम इंटेलिजेंस, तेज रेस्पॉन्स क्षमता,और सटीक लोकेशन ट्रैकिंग जैसे फायदे मिलेंगे।

भविष्य की चुनौतियां और भारत की रणनीति

स्पेस वारफेयर अभी नई अवधारणा है। आने वाले वर्षों में:

  • साइबर अटैक के साथ सैटेलाइट अटैक भी आम होंगे।
  • AI आधारित स्पेस ड्रोन का उपयोग बढ़ेगा।
  • GPS spoofing, satellite blinding जैसे हथियारों का प्रयोग होगा।

भारत को इन सभी खतरों के लिए पहले से तैयार रहना होगा। नेशनल मिलिट्री स्पेस पॉलिसी उसी तैयारी की ओर एक बड़ा कदम है।

 भारत की अंतरिक्ष शक्ति – नई ऊंचाई पर

नेशनल मिलिट्री स्पेस पॉलिसी भारत को एक नई दिशा देने जा रही है। इससे सिर्फ सेनाएं ही नहीं, बल्कि स्टार्टअप्स, ISRO और निजी अंतरिक्ष क्षेत्र भी मिलकर देश की सुरक्षा को एक नई परिभाषा देंगे।

आज जरूरत है कि हम केवल धरती पर नहीं, बल्कि आकाश से भी अपने देश की रक्षा के लिए तैयार रहें। और भारत ने इस दिशा में पहला और मजबूत कदम बढ़ा दिया है।

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