मणिकर्णिका घाट पर अघोरियों की भस्म होली: रहस्य और परंपरा

 वाराणसी में अघोरियों की भस्म होली

वाराणसी में अघोरियों द्वारा खेली जाने वाली भस्म होली एक अनोखी और रहस्यमयी परंपरा है। यह साधना और मृत्यु के दर्शन से जुड़ी एक विशेष विधि है। इस अनूठी होली का आयोजन मुख्य रूप से मणिकर्णिका घाट पर होता है, जहाँ अघोरी साधु शवों की चिता की भस्म से होली खेलते हैं।


भस्म होली की तिथि

हाशिवरात्रि और होली के आसपास: वाराणसी में अघोरियों की भस्म होली महाशिवरात्रि के दिन या होली के एक दिन पहले मानी जाती है।

चंद्र कैलेंडर के अनुसार: हिंदू पंचांग के अनुसार यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को या उसके आसपास मनाई जाती है।

विशेष आयोजन: कई बार होली के दिन ही यह उत्सव देखा जाता है, लेकिन इसका मूल संबंध शिवरात्रि से भी जुड़ा है।

भस्म होली क्यों मनाई जाती है?

मृत्यु का उत्सव: अघोरी साधु जीवन और मृत्यु को एक समान मानते हैं, इसलिए वे मृत्यु को एक उत्सव के रूप में देखते हैं।शिव साधना: भगवान शिव को औघड़दानी और महाकाल कहा जाता है, जो श्मशान में निवास करते हैं। अघोरी शिवभक्त होते हैं, इसलिए वे उनकी तरह ही श्मशान में होली खेलते हैं।

माया और मोह से मुक्ति: यह परंपरा जीवन और मृत्यु के भेद को मिटाने और माया-मोह से ऊपर उठने का प्रतीक मानी जाती है।

अघोर पंथ की परंपरा: अघोरी साधु पारंपरिक सामाजिक मान्यताओं से अलग होते हैं और वे अपनी साधना को चरम स्तर पर ले जाते हैं, जिसमें भस्म होली खेलना भी शामिल है।

भस्म होली कैसे मनाई जाती है?

स्थान: यह होली वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर मनाई जाती है, जो भारत का सबसे प्रसिद्ध श्मशान घाट है।

अघोरियों का समूह: इस अनुष्ठान में केवल अघोरी संप्रदाय के साधु भाग लेते हैं, जो शिव साधना में लीन रहते हैं।

शवों की भस्म: चिता की राख (भस्म) को एकत्र कर उससे होली खेली जाती है।

तांडव नृत्य: कई अघोरी भस्म लगाकर तांडव नृत्य करते हैं, जो शिव के रौद्र रूप का प्रतीक होता है।

शिव भक्ति के गीत: इस दौरान "बम बम भोले" और अन्य शिव भक्ति के मंत्रों का जाप किया जाता है।

शवों का आशीर्वाद: अघोरी मानते हैं कि श्मशान में चिता भस्म के संपर्क में आने से व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से पवित्र होता है।

भस्म होली की प्रमुख विशेषताएँ


श्मशान में होने वाला अनूठा आयोजन: यह दुनिया की एकमात्र ऐसी होली है, जो श्मशान घाट पर खेली जाती है।

मृत्यु और जीवन के भेद को मिटाना: अघोरी इस पर्व के माध्यम से मृत्यु के भय को समाप्त करने का संदेश देते हैं।

रूढ़ियों से अलग परंपरा: जहां आम लोग रंग-गुलाल से होली खेलते हैं, वहीं अघोरी चिता भस्म से इस त्योहार को मनाते हैं।

संन्यास और तंत्र साधना: यह उत्सव केवल अघोरी और शिव भक्तों के लिए होता है, जिसमें तंत्र-मंत्र की साधना भी की जाती है।

भूतभावन शिव की आराधना: यह आयोजन शिव के भूतनाथ स्वरूप की उपासना को समर्पित होता है।

समाज और भस्म होली का प्रभाव

रहस्य और आकर्षण: यह होली आम जनता के लिए रहस्यमयी होती है और कई लोग इसे देखने के लिए वाराणसी आते हैं।

धार्मिक पर्यटन: इस आयोजन के कारण वाराणसी में देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक जुटते हैं।

धार्मिक और तांत्रिक साधना: भस्म होली केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि गूढ़ तांत्रिक साधना का भी हिस्सा होती है।

अघोर पंथ की पहचान: यह उत्सव अघोरी परंपरा की एक महत्वपूर्ण झलक प्रस्तुत करता है।


निष्कर्ष

भस्म होली वाराणसी के धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण का एक अनूठा पर्व है। यह शिवभक्ति, अघोर साधना और मृत्यु के भय से मुक्ति का प्रतीक है। अघोरी साधु इसे सिर्फ एक त्योहार के रूप में नहीं बल्कि अपनी साधना और दर्शन के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मनाते हैं। यह आयोजन जीवन और मृत्यु के रहस्यों को समझने की दिशा में एक गूढ़ संदेश देता है कि मृत्यु कोई अंत नहीं बल्कि मोक्ष प्राप्ति का एक द्वार है।

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