लठमार होली क्यों मनाई जाती है?
लठमार होली भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के बरसाना और नंदगांव में खेली जाती है। यह होली का एक विशेष और अनोखा रूप है, जिसमें महिलाएं पुरुषों को लाठियों से मारती हैं और पुरुष बचाव करते हैं। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की प्रेम लीला से जुड़ा हुआ है।
लठमार होली भारत के मथुरा जिले के बरसाना और नंदगांव में मनाई जाती है।यह होली फाल्गुन मास में रंगों और लाठियों के साथ खेली जाती है।यह त्योहार भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम-कहानी से प्रेरित है।इस दिन महिलाएं पुरुषों पर लाठियां चलाती हैं और पुरुष ढाल लेकर खुद को बचाते हैं।यह त्योहार हंसी-मजाक, प्रेम और आनंद का प्रतीक है
लठमार होली मनाने के पीछे की पौराणिक कथा
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ नंदगांव से बरसाना आए थे।उन्होंने अपनी प्रिया राधा और उनकी सखियों (गोपियों) के साथ होली खेलने की इच्छा जताई। लेकिन राधा और उनकी सखियों ने मजाक में कृष्ण और उनके दोस्तों को लाठियों से मारना शुरू कर दिया। तब से यह परंपरा चली आ रही है, जिसे लठमार होली कहा जाता है। लठमार होली फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी या दशमी तिथि को मनाई जाती है। यह होली से एक सप्ताह पहले आयोजित की जाती है। इस दिन बरसाना की महिलाएं नंदगांव के पुरुषों पर लाठियां चलाती हैं। अगले दिन नंदगांव की महिलाएं बरसाना के पुरुषों से होली खेलती हैं।
लठमार होली का आयोजन कैसे होता है?
(1) पहला दिन - बरसाना में लठमार होली नंदगांव के पुरुष भगवान कृष्ण की तरह बरसाना पहुंचते हैं। बरसाना की महिलाएं उन्हें राधा की सखियों की तरह लाठियों से मारती हैं।पुरुष खुद को ढाल से बचाने की कोशिश करते हैं। इसमें संगीत, भजन, नृत्य और मस्ती होती है।
(2) दूसरा दिन - नंदगांव में होली दूसरे दिन बरसाना के पुरुष नंदगांव जाते हैं। वहां की महिलाएं उन्हें लाठियों से मारकर होली खेलती हैं। पुरुष इस दौरान गाने गाते हैं और खुद को बचाने का प्रयास करते हैं। इस खेल के बाद सभी लोग मिलकर अबीर-गुलाल से रंग खेलते हैं।
लठमार होली का महत्व
यह प्रेम, भक्ति और मस्ती का पर्व है। इसमें राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी को जीवंत रूप से प्रस्तुत किया जाता है। यह त्योहार गोपियों और ग्वालों के बीच के हंसी-मजाक और प्रेम को दर्शाता है। इसे नारी शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि इसमें महिलाएं पुरुषों पर लाठियां चलाती हैं। यह लोगों को सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर आनंद मनाने का अवसर देता है।
लठमार होली के मुख्य आकर्षण
लाठियों से खेली जाने वाली अनोखी होली।
राधा-कृष्ण के भजन और लोकगीत।
रंग, गुलाल और फूलों की होली।
विशेष पकवान जैसे ठंडाई, गुजिया और मिठाइयां।
हजारों भक्तों और पर्यटकों की भागीदारी।
लठमार होली देखने के लिए सही समय और स्थान
स्थान: बरसाना (पहला दिन), नंदगांव (दूसरा दिन)।
समय: होली से 7-8 दिन पहले।
कैसे पहुंचे?
रेलवे: मथुरा जंक्शन से बरसाना 50 किमी दूर है।
सड़क मार्ग: दिल्ली, आगरा, जयपुर से बस या टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है।
निकटतम हवाई अड्डा: आगरा और दिल्ली।
लठमार होली के दौरान विशेष परंपराएं
लट्ठमार खेल: महिलाएं पुरुषों पर लाठियां चलाती हैं।
गोपियों का मजाक: महिलाएं पुरुषों को छेड़ती हैं और उन पर रंग डालती हैं।
ठंडाई और भांग: इस दिन ठंडाई और भांग का सेवन किया जाता है।
भजन-कीर्तन: राधा-कृष्ण के भजनों से माहौल भक्तिमय हो जाता है।
लठमार होली की आधुनिक झलक
अब यह एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन बन चुका है। देश-विदेश से हजारों पर्यटक इसे देखने आते हैं। इसमें संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम देखने को मिलता है। सरकार द्वारा विशेष सुरक्षा और प्रबंध किए जाते हैं।
निष्कर्ष
लठमार होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि राधा-कृष्ण की प्रेमलीला का प्रतीक है। यह प्रेम, आनंद, भक्ति और नारी शक्ति का उत्सव है। इस अनोखी
परंपरा को देखने हर साल हजारों लोग बरसाना और नंदगांव आते हैं। अगर आप भी होली का एक अलग और ऐतिहासिक रूप देखना चाहते हैं, तो एक बार लठमार होली का अनुभव जरूर लें।
🙏राधे राधे 🙏
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