गर्मियों की मार: हर साल हीटवेव से होती है हजारों गरीबों की मौत, जानिए डराने वाले आंकड़े और असली कारण
जब सूरज बन जाता है दुश्मन
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| गर्मियों में हर साल हो जाती है इतने गरीबों की मौत |
हीटवेव क्या है और क्यों है ये जानलेवा?
हीटवेव यानी लू एक ऐसी स्थिति होती है जब तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा बढ़ जाता है, और वो भी लगातार कई दिनों तक। भारत में जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाए और गर्म हवाएं चलने लगें, तो उसे हीटवेव कहा जाता है। कई राज्यों में तो ये तापमान 47 डिग्री तक भी पहुंच जाता है, जिससे इंसानी शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है।
हीटवेव से मौतें: सच्चाई जो आंकड़ों से डराती है
लोकसभा में 21 जुलाई 2023 को दिए गए आंकड़े के अनुसार, 2015 से 2023 के बीच हीटवेव से कुल 4057 लोगों की जान चली गई। इनमें से बड़ी संख्या गरीब तबके की थी। साल दर साल आंकड़े इस प्रकार रहे:
- 2015: 2040 मौतें
- 2016: 1102
- 2017: 375
- 2018: 24
- 2019: 215
- 2020: 4 (कोविड लॉकडाउन के चलते बाहर निकलना कम हुआ)
- 2021: 0
- 2022: 33
- 2023: 264
इन आंकड़ों से साफ है कि हीटवेव का कहर हर साल गरीबों की चुपचाप जान लेता है, लेकिन चर्चा बहुत कम होती है।
गरीब ही क्यों मरते हैं सबसे ज्यादा?
1. रहने की व्यवस्था: झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के घर टीन की चादरों और प्लास्टिक से बने होते हैं। ये गर्मी को और ज्यादा कैद कर लेते हैं।
2. बिजली और पानी की किल्लत: गरीबों के पास लगातार बिजली और ठंडे पानी की सुविधा नहीं होती। न एसी, न कूलर।
3. काम की मजबूरी: दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी-पटरी वाले, निर्माण मजदूर—इन लोगों को तो धूप में ही काम करना पड़ता है, नहीं तो पेट नहीं भरता।
4. शरीर में पोषण की कमी: कमजोर शरीर हीटवेव को झेल नहीं पाता। नतीजा—हीट स्ट्रोक या डिहाइड्रेशन से मौत।
हीटवेव के महीनों की बात करें तो...
भारत में अप्रैल, मई और जून सबसे ज्यादा गर्मी वाले महीने होते हैं। इसी दौरान हीटवेव का असर सबसे तीव्र होता है। मई के अंत और जून की शुरुआत में कई बार तापमान 47 डिग्री को भी पार कर जाता है।
हीटवेव की वजह से आने वाली समस्याएं
- डिहाइड्रेशन: शरीर से पानी का अत्यधिक नुकसान
- हीट स्ट्रोक: शरीर का तापमान नियंत्रित नहीं रह पाता
- हृदयगति रुकना: तेज गर्मी में ब्लड प्रेशर का बिगड़ना
- नींद और मानसिक तनाव: गर्मी की वजह से नींद न आना और चिड़चिड़ापन
गरीबों के लिए हीटवेव कैसे बनता है 'मौन हत्यारा'?
हीटवेव की सबसे भयावह बात यह है कि यह धीरे-धीरे और चुपचाप मारता है। न तो कोई बड़ी दुर्घटना होती है, न ही अचानक चिल्लाहट। बस एक दिन अखबार में एक लाइन पढ़ने को मिलती है—"हीटवेव से 3 मजदूरों की मौत।" और ये आंकड़ा धीरे-धीरे सैकड़ों में बदल जाता है।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी
हीटवेव से मौतें रोकी जा सकती हैं, अगर सरकार और समाज मिलकर कुछ जरूरी कदम उठाएं:
1. हीट शेल्टर बनाए जाएं: हर शहर में ऐसे स्थान हों जहां लोग दिन में कुछ घंटों के लिए छांव और पानी पा सकें।
2. पानी की मुफ्त व्यवस्था: बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, बाजार आदि में ठंडे पानी की सुविधा हो।
3. दिहाड़ी मजदूरों के लिए दोपहर में छुट्टी: गर्मी के चरम समय (12 बजे से 4 बजे तक) मजदूरी रोकी जाए।
4. झुग्गियों में कूलर और बिजली सब्सिडी: कम आय वाले वर्ग को गर्मियों के लिए सब्सिडी आधारित कूलिंग उपकरण दिए जाएं।
5. सामाजिक जागरूकता: लोगों को बताया जाए कि गर्मी में क्या करें और क्या न करें।
हीटवेव से बचने के उपाय: सभी के लिए जरूरी टिप्स
- ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं
- हल्के सूती कपड़े पहनें
- दोपहर में धूप से बचें
- अगर बाहर जाना पड़े तो सिर और शरीर ढंक कर निकलें
- छाछ, नारियल पानी, नींबू पानी जैसी चीजें लें
- अगर चक्कर आए, उल्टी महसूस हो या कमजोरी लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें
गर्मी का समाधान केवल छांव नहीं, समझदारी भी है
गर्मी कोई नई बात नहीं, लेकिन हीटवेव जैसी स्थितियों ने इसे जानलेवा बना दिया है। खासकर गरीबों के लिए, जिनके पास ठंडी छांव और आराम का कोई विकल्प नहीं होता। आंकड़े डराते हैं, लेकिन जिम्मेदार कदम ही राहत दे
सकते हैं। सरकार, समाज और हम सबको मिलकर इस ‘मौन हत्यारे’ के खिलाफ लड़ना होगा, ताकि हर साल हजारों गरीबों की जान यूं चुपचाप न चली जाए।

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