3831 करोड़3831 का जेपी गंगा पथ बना बिहार की शर्म! उद्घाटन के 3 दिन बाद ही दिखीं दरारें, क्या ये भ्रष्टाचार की बुनियाद?
क्या है जेपी गंगा पथ?
जेपी गंगा पथ, जिसे लोग 'पटना मरीन ड्राइव' के नाम से जानते हैं, बिहार सरकार का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। गंगा नदी के किनारे 20.5 किलोमीटर लंबी ये सड़क दीदारगंज से दीघा तक फैली हुई है। इसका उद्देश्य पटना शहर की ट्रैफिक समस्या को कम करना और एक नया वाटरफ्रंट टूरिज्म डेस्टिनेशन विकसित करना था।
- लागत: 3831 करोड़ रुपये
- निर्माण एजेंसी: बिहार राज्य पथ विकास निगम लिमिटेड (BSRDC)
- अनुमोदन: केंद्र व राज्य सरकार द्वारा
- समयावधि: लगभग 8 वर्षों में बना
3 दिन का सपना, दरारों की हकीकत
सीएम नीतीश कुमार ने 11 अप्रैल 2025 को जेपी सेतु (गंगा पथ) का उद्घाटन किया। लेकिन अभी उद्घाटन की रौशनी बुझी भी नहीं थी कि 14 अप्रैल को ब्रिज पर दरारें दिखाई देने लगीं। सबसे पहले ये दरारें दीदारगंज के पास पिलर A-3 के दोनों लेन में देखी गईं। वीडियो वायरल हुआ और मामला तूल पकड़ गया।
लोगों का गुस्सा सोशल मीडिया पर फूट पड़ा:
“3831 करोड़ खर्च कर ऐसा क्या बनाया कि तीन दिन में ही दरार आ गई?”
“ये विकास नहीं, भ्रष्टाचार की दरार है!”
सरकार और इंजीनियरिंग विभाग की सफाई
जैसे ही दरारों की खबर आई, बिहार राज्य रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (BSRDC) की टीम मौके पर दीदारगंज पहुंच गई।
BSRDC के एमडी शीर्षत कपिल अशोक ने बयान दिया:
“ब्रिज स्ट्रक्चर और एप्रोच रोड के बीच जो गैप रहता है, लोग उसे दरार समझ रहे हैं। यह इंजीनियरिंग का हिस्सा है। मौसम और तापमान के अनुसार दो स्ट्रक्चर के बीच एक्सपेंशन जॉइंट रखना जरूरी होता है।”
मंत्री नितिन नवीन ने कहा:
“मैंने खुद टीम को जांच के आदेश दिए हैं। ये दरारें नहीं, बल्कि दो पिलर के बीच का जॉइंट गैप है। ऐसी तकनीकी बातें लोगों को समझाना जरूरी है। मंगलवार को मैं स्वयं निरीक्षण करूंगा।”
लेकिन सवाल उठता है – क्या यह सिर्फ ‘गैप’ है या असली दरार?
यहां तकनीकी विश्लेषण जरूरी है:
1. क्या स्ट्रक्चरल गैप इतना स्पष्ट दिखाई देता है?
सामान्यतः एक्सपेंशन जॉइंट्स को रबर या अन्य फ्लेक्सिबल मटेरियल से कवर किया जाता है, जिससे उनमें दरार जैसा लुक न आए।
2. क्या इतनी जल्दी फिनिशिंग कार्य में कमी आना सामान्य है?
यदि उद्घाटन के तीन दिन बाद ही मरम्मत करनी पड़े तो निर्माण में जल्दबाज़ी या घटिया क्वालिटी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
IIT से ऑडिट की घोषणा – अब क्या होगा?
सरकार ने जेपी गंगा पथ के लिए IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से थर्ड पार्टी ऑडिट कराने की घोषणा की है। यह एक सकारात्मक कदम है जिससे यह पता चलेगा कि:
- दरारें किस कारण से आईं?
- निर्माण सामग्री की गुणवत्ता क्या थी?
- किस ठेकेदार या एजेंसी ने निर्माण कार्य किया?
- क्या निर्माण मानकों का पालन हुआ था?
3831 करोड़ का सवाल – क्या जनता को जवाब मिलेगा?
एक आम बिहारी नागरिक की तरह आपके मन में भी यह सवाल है –
“क्या इस पुल की उम्र केवल 3 दिन की थी?”
इस प्रोजेक्ट पर जनता का टैक्स खर्च हुआ है, ऐसे में पारदर्शिता और जवाबदेही बेहद जरूरी है। अगर सच में यह सिर्फ ‘गैप’ था तो उसे उद्घाटन से पहले स्पष्ट क्यों नहीं किया गया?
सोशल मीडिया रिएक्शन – जनता का गुस्सा
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर #JPSetuCracks ट्रेंड कर रहा है। लोग मीम्स, वीडियो और कमेंट्स के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।
एक यूजर ने लिखा:
“बिहार में पुल बनता नहीं, गिरता है या टूटता है।”
दूसरे ने लिखा:
“गंगा किनारे बसा ये विकास, भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ा है।”
बिहार की छवि पर असर – क्या निवेशक अब भी आएंगे?
जेपी गंगा पथ को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का हिस्सा माना जा रहा था। इसके साथ मरीन ड्राइव जैसा इंफ्रास्ट्रक्चर जुड़ने से उम्मीद थी कि टूरिज्म, निवेश और व्यापार बढ़ेगा। लेकिन अब जब इसकी गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं तो:
- निवेशकों का भरोसा डगमगाएगा।
- भ्रष्टाचार और घटिया निर्माण की बदनामी बढ़ेगी।
- आने वाले प्रोजेक्ट्स की पारदर्शिता पर भी असर पड़ेगा।
क्या यह पहला मामला है? नहीं! बिहार में पहले भी पुल गिर चुके हैं
- भागलपुर में पुल गिरने की घटना
- सिवान में पुल के पिलर में दरारें
- मुंगेर में निर्माण के दौरान हादसा
इन सभी घटनाओं ने बिहार की निर्माण एजेंसियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं।
अंतिम शब्द – भरोसा टूटा है, अब पारदर्शिता दिखाइए
3831 करोड़ कोई छोटा बजट नहीं है। इस रकम से बिहार के कई अस्पताल, स्कूल, सड़कें बन सकती थीं। अगर यह पुल सही से बना होता तो पीढ़ियों तक काम आता। लेकिन अब जब इसकी नींव में ही शक की दरार है, तो सरकार को चाहिए कि:
- जांच रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में लाई जाए।
- अगर कोई दोषी पाया जाए तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो।
- भविष्य में ऐसे बड़े प्रोजेक्ट्स की हर जानकारी पारदर्शी हो।

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