पहलगाम के हीरो रईस अहमद भट्ट: आतंक के साए में इंसानियत की मिसाल

 आतंक के बीच चमकी उम्मीद की एक किरण

कश्मीर, जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है, आज भी कई बार आतंक की काली छाया से कांप उठता है। लेकिन इसी धरती से ऐसे भी किरदार निकलते हैं जो इंसानियत और हिम्मत की मिसाल बन जाते हैं।

"पहलगाम हीरो रईस अहमद भट्ट ने पर्यटकों की जान बचाई"
पहलगाम का हीरो रईस अहमद भट्ट

हाल ही में पहलगाम के बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। गोलियों की आवाज़ों और चीख-पुकार के बीच एक नाम उभरा — रईस अहमद भट्ट

उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना न केवल घायलों की मदद की, बल्कि कई जिंदगियों को कंधों पर उठाकर मौत के मुंह से बाहर निकाला। आज उन्हें ‘पहलगाम का हीरो’ कहा जा रहा है।

कौन हैं रईस अहमद भट्ट?

  • रईस अहमद भट्ट, पहलगाम के टूरिस्ट पोनी स्टैंड के अध्यक्ष हैं। पेशे से वे घुड़सवारी और पर्यटकों की सेवा से जुड़े हुए हैं।
  • 35 वर्षीय भट्ट ने अपना पूरा जीवन पर्यटकों के स्वागत और कश्मीर की खूबसूरती को दुनिया तक पहुँचाने में बिताया है।
  • उनकी पहचान एक साधारण मेहनती इंसान की थी, लेकिन बैसरन हमले के बाद वे इंसानियत और बहादुरी का प्रतीक बन गए हैं।

वह काली दोपहर: जब पहलगाम कांप उठा

10 अप्रैल 2025 की दोपहर, जब ज्यादातर लोग रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे, बैसरन घाटी में अचानक गोलियों की गूंज सुनाई दी। पर्यटक जो प्रकृति की गोद में सुकून की तलाश में आए थे, वह आतंक के साये में फंस गए।

कोई चीख रहा था, कोई जान बचाने के लिए दौड़ रहा था, कोई कीचड़ में फिसल रहा था, तो कोई मदद के लिए पुकार रहा था।इस अफरा-तफरी में रईस अहमद भट्ट को अपने ऑफिस में खबर मिली — और उन्होंने बिना एक पल गंवाए फैसला कर लिया: "जो होगा देखा जाएगा, लेकिन इन लोगों को अकेला नहीं छोड़ सकते।"

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मौत के साये में हिम्मत भरा सफर

भट्ट ने तुरंत 2-3 स्थानीय मजदूरों को अपने साथ जोड़ा और बिना सुरक्षा या हथियार के उस जगह की ओर बढ़ चले जहां हमले की सूचना थी। रास्ते में जैसे-जैसे और लोग मिले, उन्होंने भी उन्हें साथ लिया। कुल 6 लोग बनकर वे घटनास्थल की ओर तेजी से बढ़े।

उन्होंने बताया कि रास्ता न केवल खतरनाक था, बल्कि हर कदम पर यह डर था कि आतंकी कहीं आसपास ही छिपे हो सकते हैं।

> "अगर आज मर भी गए, तो कोई अफसोस नहीं, क्योंकि इंसानियत का फर्ज निभाना ज़रूरी है," भट्ट ने बाद में ANI से कहा।

दर्दनाक मंजर: जब आँखों के सामने बिछी थीं लाशें

जैसे ही वे बैसरन घाटी पहुंचे, वहां का दृश्य रोंगटे खड़े कर देने वाला था। चारों ओर घायल पड़े थे, कुछ की सांसे थम चुकी थीं। लोग नंगे पैर कीचड़ में दौड़ते हुए इधर-उधर जान बचा रहे थे। महिलाएं अपने पतियों को बचाने की गुहार लगा रही थीं।भट्ट ने बिना कोई समय गंवाए, घायलों को उठाना शुरू किया।किसी को कंधे पर, किसी को सहारा देकर, उन्होंने सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया।

जब दिलासा बना जीवनदान

घायल पर्यटक न केवल शारीरिक चोटों से परेशान थे, बल्कि मानसिक रूप से भी टूट चुके थे। भट्ट ने जंगल की पाइपलाइन से पानी निकालकर घायलों को पिलाया, उन्हें ढाढ़स बंधाया और कहा:

> "अब आप सुरक्षित हैं, चिंता मत करिए।"

उनके ये शब्द उन घायलों के लिए किसी अमृत से कम नहीं थे।

पुलिस और सुरक्षा बलों का आगमन

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस भी मौके के लिए रवाना हो गई, लेकिन इलाके में मोटर व्हीकल रोड न होने के कारण उन्हें पैदल ही आना पड़ा। भट्ट और उनके साथियों ने शॉर्टकट रास्ते से पहुंचकर शुरुआती बचाव कार्य शुरू कर दिया था।

करीब 10 मिनट बाद SHO रियाज साहब और उनकी टीम वहां पहुँची, लेकिन तब तक भट्ट कई जिंदगियों को मौत के मुंह से खींच चुके थे।

पर्यटन पर पड़ा गहरा असर

रईस अहमद भट्ट ने दुख के साथ बताया कि बैसरन घाटी, जो आमतौर पर पर्यटकों से भरी रहती है, अब वीरान हो गई है। कश्मीर, जिसकी आजीविका का 99% हिस्सा पर्यटन पर आधारित है, ऐसे हमलों से गहरी चोट खा रहा है।

भट्ट कहते हैं:

> "जब पर्यटक नहीं आएंगे तो हमारा गुजारा कैसे होगा? हम शांति चाहते हैं, आतंक नहीं।"

उन्होंने यह भी बताया कि पूरे पहलगाम में इस घटना के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुआ।

पहलगाम का गर्व: रईस अहमद भट्ट

  • आज रईस अहमद भट्ट केवल पहलगाम नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं।
  • वे इस बात के जीते-जागते उदाहरण हैं कि विपत्ति की घड़ी में इंसानियत और हिम्मत सबसे बड़ा हथियार होती है।
  • उनकी बहादुरी को सम्मान देने के लिए प्रशासन और स्थानीय लोगों ने उन्हें "पहलगाम का हीरो" का खिताब दिया है।

रईस अहमद भट्ट से हम क्या सीख सकते हैं?

  • हिम्मत और इंसानियत कभी हार नहीं मानती।
  • संकट की घड़ी में पहल करना जरूरी है।
  • डर को हराकर दूसरों की मदद करना सच्ची बहादुरी है।
  • शांति और सौहार्द्र ही किसी भी समाज की असली ताकत है।

रईस अहमद भट्ट ने साबित कर दिया कि असली नायक वही होता है जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दे।

आज जब दुनिया खुदगर्जी और स्वार्थ से घिरी दिखती है, ऐसे में भट्ट जैसे लोग उम्मीद की एक नई किरण बनकर उभरते हैं।

उनकी कहानी हर भारतीय के दिल में यह यकीन जगाती है कि — "इंसानियत जिंदा है और हमेशा जिंदा रहेगी।"

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