भारत-पाकिस्तान युद्ध और मुस्लिम देशों की भूमिका : एक नई वैश्विक तस्वीर
नई दिल्ली/इस्लामाबाद — पहलगाम में हुए भीषण नरसंहार के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच चुका है। इस आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की हत्या ने न केवल भारतीय जनमानस को झकझोर दिया है बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान दक्षिण एशिया की इस नाजुक स्थिति की ओर खींच लिया है।
लेकिन इस बार की खास बात यह है कि ज्यादातर मुस्लिम देश पाकिस्तान के पक्ष में खुलकर खड़े नहीं हो रहे। बल्कि वे अपने भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि कैसे सऊदी अरब, कतर, यूएई, ईरान और तुर्की जैसे मुस्लिम देश इस संघर्ष में संतुलित और रणनीतिक भूमिका निभा रहे हैं।
पहलगाम हमला और वैश्विक प्रतिक्रिया
पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले के तुरंत बाद दुनिया के अधिकांश देशों ने आतंकवाद की कड़ी निंदा की। अमेरिका, फ्रांस, जापान, ब्रिटेन जैसे बड़े देशों ने भारत के साथ एकजुटता दिखाई। वहीं इस बार कई इस्लामिक देशों की प्रतिक्रिया भी बदली हुई दिखी। उन्होंने पाकिस्तान का पक्ष लेने के बजाय या तो चुप्पी साधी या फिर संतुलित बयान दिए।
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सऊदी अरब : व्यापारिक हित पहले
सऊदी अरब, जो पारंपरिक रूप से पाकिस्तान का करीबी सहयोगी माना जाता रहा है, इस बार बेहद सावधानी से कदम रख रहा है। 'विजन 2030' के तहत सऊदी अरब अपनी अर्थव्यवस्था को तेल पर निर्भरता से हटाकर विविधता की ओर ले जाना चाहता है। इसमें भारत की भूमिका अहम है।
- भारत-सऊदी अरब व्यापार संबंध: भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग $42 अरब डॉलर से अधिक का है।
- ऊर्जा और श्रमिक संबंध: भारत, सऊदी अरब के लिए तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है और 25 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी वहां कार्यरत हैं।
- सऊदी की प्रतिक्रिया: सऊदी ने न तो कश्मीर पर बयान दिया, न ही पाकिस्तान के पक्ष में। उसने पहलगाम हमले की सामान्य निंदा की और इसे भारत-पाक द्विपक्षीय मुद्दा बताया।
कतर : आर्थिक स्थिरता सर्वोपरि
कतर, जो अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के लिए जाना जाता है, इस बार स्पष्ट रूप से तटस्थ रहा। उसके लिए क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक हित ज्यादा मायने रखते हैं।
- भारत-कतर व्यापार: दोनों देशों के बीच वार्षिक व्यापार लगभग $15 अरब डॉलर का है।
- प्रवासी भारतीय: लगभग 7 लाख भारतीय कतर में निवास करते हैं।
- कतर की प्रतिक्रिया: कतर ने न तो पाकिस्तान के समर्थन में कोई बयान दिया, न ही भारत की आलोचना की। उसने केवल तनाव कम करने की अपील की।
संयुक्त अरब अमीरात (UAE) :
- संतुलन की कूटनीति: यूएई का भारत के साथ व्यापार और निवेश संबंध बेहद मजबूत है।
- भारत-UAE व्यापार: $85 अरब डॉलर का व्यापार, जो 2030 तक $100 अरब डॉलर करने का लक्ष्य है।
- प्रवासी भारतीय: करीब 34 लाख भारतीय वहां रहते हैं।
- यूएई की प्रतिक्रिया: यूएई ने केवल भारत द्वारा सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) के निलंबन पर चिंता जताई, लेकिन पाकिस्तान के पक्ष में कोई खुला समर्थन नहीं दिया।
ईरान : मध्यस्थ की भूमिका
ईरान ने इस पूरे घटनाक्रम में खुद को एक निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में पेश किया है।
- भारत-ईरान व्यापार: लगभग $17 अरब डॉलर का वार्षिक व्यापार।
- चाबहार पोर्ट परियोजना: भारत-ईरान की सबसे अहम रणनीतिक परियोजना, जो पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का विकल्प है।
- ईरान की प्रतिक्रिया: ईरान ने तनाव कम करने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की। उसने स्पष्ट कर दिया कि वह पाकिस्तान के पक्ष में खुलकर खड़ा नहीं होगा ताकि भारत के साथ संबंध खराब न हों।
तुर्की : बदलती प्राथमिकताएं
तुर्की पारंपरिक रूप से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है। लेकिन इस बार उसके स्वर संयमित रहे।
- भारत-तुर्की व्यापार: $10 अरब डॉलर का वार्षिक व्यापार।
- तुर्की की प्रतिक्रिया: तुर्की ने केवल राजनयिक बयान दिए और हाल ही में स्पष्ट किया कि वह पाकिस्तान को हथियार नहीं भेज रहा। इससे साफ है कि वह भारत से टकराव नहीं चाहता।
क्या बदल गई है इस्लामिक देशों की सोच?
इस पूरे घटनाक्रम में एक बात साफ नजर आती है कि मुस्लिम देशों की विदेश नीति अब केवल धार्मिक एकता पर आधारित नहीं रही। भू-राजनीतिक रणनीति और आर्थिक हित ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। भारत की विशाल अर्थव्यवस्था, ऊर्जा जरूरतें और श्रम बाजार में भूमिका ने उसे इन देशों के लिए अपरिहार्य बना दिया है।
भारत के लिए कूटनीतिक विजय?
इस घटनाक्रम को भारत की कूटनीतिक सफलता भी कहा जा सकता है। बीते एक दशक में भारत ने खाड़ी देशों, ईरान और तुर्की के साथ संबंधों को मजबूत किया है। इससे पाकिस्तान के परंपरागत समर्थन आधार में सेंध लगी है।
भारत-पाकिस्तान के इस नए संघर्ष में इस्लामिक देशों का रुख बताता है कि विश्व राजनीति में अब धर्म से अधिक अर्थव्यवस्था और रणनीतिक संतुलन मायने रखता है। भारत की सक्रिय कूटनीति और आर्थिक शक्ति ने उसे वैश्विक समर्थन दिलाने में
बड़ी भूमिका निभाई है। आने वाले समय में यह संतुलन और गहराता दिख सकता है।

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