Padma Awards: इंजीनियरिंग से निकले दो चेहरे, दो रास्ते: एक बना 'वेदांताचार्य', मिला पद्मश्री, दूसरा 'IIT बाबा', बना मजाक का विषय

 दो इंजीनियर, दो रास्ते—एक बना 'वेदांताचार्य', दूसरा 'IIT बाबा'। दोनों ने तकनीकी शिक्षा ली, लेकिन जीवन के अर्थ की तलाश में अलग-अलग राहें चुनीं। एक ने भारतीय दर्शन को अपनाकर पद्मश्री पाया, जबकि दूसरा आध्यात्मिक खोज में समाज की आलोचना का पात्र बना। आइए, इन दोनों की कहानियों को विस्तार से समझते हैं।

जोनास मासेटी: ब्राजील से भारत तक वेदांत का सफर

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जोनास मासेटी का जन्म रियो डी जनेरियो, ब्राजील में हुआ। उन्होंने मिलिट्री इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया और ब्राजीलियन आर्मी में पांच साल सेवा दी। इसके बाद वे एक स्ट्रेटेजिक कंसल्टिंग फर्म में कार्यरत रहे। 

वेदांत की ओर रुझान

2004 में, जोनास ने ब्राजील में एक भारतीय शिक्षक से वेदांत की शिक्षा लेनी शुरू की। बाद में उन्होंने ग्लोरिया एरिएरा से वेदांत और संस्कृत सीखा। 2006 में, उन्होंने अमेरिका में स्वामी दयानंद सरस्वती से मुलाकात की, जिससे उनकी आध्यात्मिक यात्रा को नई दिशा मिली। इसके बाद, उन्होंने भारत आकर कोयंबटूर स्थित अरष विद्या गुरुकुलम में तीन साल का आवासीय कोर्स पूरा किया। 

ब्राजील में वेदांत का प्रचार

भारत से लौटने के बाद, जोनास ने ब्राजील में 'इंस्टिट्यूटो विश्व विद्या' की स्थापना की। यह संस्थान वेदांत, भगवद गीता, संस्कृत और योग की शिक्षा देता है। उनकी ऑनलाइन कक्षाएं, रिट्रीट्स और पब्लिकेशन्स के माध्यम से उन्होंने 1.5 लाख से अधिक छात्रों तक भारतीय दर्शन पहुंचाया। 

पद्मश्री सम्मान

भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान को देखते हुए, भारत सरकार ने 2025 में उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में उनकी सराहना की और ब्राजील यात्रा के दौरान उनसे मुलाकात भी की। 

अभय सिंह: 'IIT बाबा' की आत्मिक यात्रा

शिक्षा और करियर

अभय सिंह हरियाणा के झज्जर जिले के सासरौली गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने IIT बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बीटेक किया और बाद में डिजाइन में मास्टर्स किया। पढ़ाई के बाद, वे कनाडा चले गए और एक एयरोप्लेन निर्माण कंपनी में 3 लाख रुपये मासिक वेतन पर कार्यरत रहे। 

आध्यात्मिक रुझान और संघर्ष

कोविड-19 महामारी के दौरान, अभय कनाडा में फंसे रहे। इस अवधि में उन्होंने आत्मचिंतन किया और जीवन के अर्थ की तलाश में भारतीय दर्शन, विशेषकर विवेकानंद और जयकृष्णमूर्ति के विचारों का अध्ययन किया। भारत लौटने के बाद, उन्होंने फोटोग्राफी, फिजिक्स टीचिंग और ध्यान में रुचि ली। हालांकि, परिवार और समाज ने उनके व्यवहार को असामान्य मानते हुए उन्हें मानसिक रूप से अस्वस्थ समझा। 

संन्यास और काशी की यात्रा

अभय ने घर छोड़ दिया और आध्यात्मिक मार्ग पर चल पड़े। काशी में उनकी मुलाकात बाबा सोमेश्वर पुरी से हुई, जिन्होंने उन्हें साधना की दिशा दिखाई। उन्होंने 2000 किलोमीटर की पदयात्रा की और महाकुंभ में भाग लिया। हालांकि, सोशल मीडिया पर उन्हें 'IIT बाबा' कहकर मजाक का पात्र बनाया गया। 

निष्कर्ष: ज्ञान, विनय और दिखावे का अंतर

जोनास मासेटी और अभय सिंह दोनों ने जीवन के गूढ़ प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए तकनीकी करियर छोड़ दिया। जोनास ने भारतीय दर्शन को अपनाकर समाज में सकारात्मक योगदान दिया और सम्मान प्राप्त किया। वहीं, अभय सिंह की आत्मिक यात्रा व्यक्तिगत रही, जिसे समाज ने समझने की बजाय आलोचना की दृष्टि से देखा। 

यह तुलना हमें सिखाती है कि ज्ञान विनय से प्राप्त होता है, जबकि दिखावा तिरस्कार का कारण बनता है। अभय सिंह की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि आत्मिक खोज व्यक्तिगत होती है, जिसे समाज की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती। 

दोनों की यात्राएं हमें यह सिखाती हैं कि जीवन का अर्थ केवल भौतिक सफलता में नहीं, बल्कि आत्मिक संतोष में भी निहित है। जहां एक ने समाज के साथ मिलकर योगदान दिया, वहीं दूसरे ने समाज की परवाह किए बिना अपनी राह चुनी। दोनों ही अपने-अपने तरीके से प्रेरणादायक हैं। 


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