हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी की मांग ने एक नई बहस को जन्म दिया है। इस बयान के बाद पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी है, जिसे उसने "गैर-जिम्मेदाराना और आक्रामक" करार दिया है।
राजनाथ सिंह का बयान और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
राजनाथ सिंह ने हाल ही में एक बयान में कहा कि भारत ने हमेशा 'नो फर्स्ट यूज़' (No First Use) नीति का पालन किया है, लेकिन भविष्य में क्या होगा, यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। इस बयान को पाकिस्तान ने गंभीरता से लिया और इसे भारत की "गैर-जिम्मेदाराना और आक्रामक" नीति का प्रतीक बताया। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि भारत का यह रुख क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा है और इससे दक्षिण एशिया में अस्थिरता बढ़ सकती है।
इसे भी जरूर पढ़ें:- ऑपरेशन सिंदूर के बाद ऑपरेशन केलर: आतंक के खिलाफ भारत का आर-पार का युद्ध
IAEA की भूमिका और पाकिस्तान का रुख
राजनाथ सिंह की IAEA से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम पर निगरानी की मांग के बाद, पाकिस्तान ने इस पर आपत्ति जताई है। पाकिस्तान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है और वह IAEA के साथ सहयोग करता रहा है। IAEA के महानिदेशक राफेल ग्रोसी ने भी हाल ही में पाकिस्तान का दौरा किया था और वहां के प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी, जिसमें दोनों पक्षों ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की थी।
भारत-पाकिस्तान परमाणु नीति और इतिहास
भारत और पाकिस्तान दोनों ने 1998 में परमाणु परीक्षण किए थे, जिसके बाद दोनों देशों ने परमाणु हथियारों के विकास में तेजी लाई। भारत ने 'नो फर्स्ट यूज़' नीति अपनाई, जबकि पाकिस्तान ने 'क्रेडिबल मिनिमम डिटरेंस' की नीति अपनाई। 1999 में दोनों देशों ने लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए, जिसमें परमाणु हथियारों के आकस्मिक या अनधिकृत उपयोग से बचने के लिए उपायों पर सहमति बनी थी।
वर्तमान स्थिति और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा है, जिसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर संघर्ष विराम के उल्लंघन और आतंकवाद का समर्थन करने के आरोप लगाए हैं। अमेरिका, चीन और अन्य देशों ने दोनों देशों से संयम बरतने और बातचीत के माध्यम से मुद्दों को सुलझाने की अपील की है। IAEA ने भी दक्षिण एशिया में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए दोनों देशों से सहयोग की मांग की है।
राजनाथ सिंह के बयान और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया ने एक बार फिर दक्षिण एशिया में परमाणु हथियारों की भूमिका और सुरक्षा पर बहस छेड़ दी है। दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी और पारस्परिक संदेह क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बन सकते हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह दोनों देशों के बीच संवाद और विश्वास बहाली के उपायों को प्रोत्साहित करे, ताकि क्षेत्र में स्थायी शांति सुनिश्चित की जा सके।
IAEA क्या है?
IAEA का पूरा नाम International Atomic Energy Agency (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) है। यह एक स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने, परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने, और परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है।
IAEA की स्थापना 1957 में की गई थी और इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में स्थित है। यह संगठन संयुक्त राष्ट्र (UN) की सहायक एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
IAEA का उद्देश्य:
IAEA का मुख्य उद्देश्य है:
1. परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग:
सदस्य देशों को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी का कृषि, चिकित्सा, ऊर्जा और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सुरक्षित और शांतिपूर्ण तरीके से उपयोग करने में मदद करना।
2. परमाणु हथियारों का प्रसार रोकना:
यह सुनिश्चित करना कि कोई भी देश या संस्था परमाणु ऊर्जा का उपयोग हथियारों के निर्माण के लिए न करे।
3. परमाणु सुरक्षा:
परमाणु संयंत्रों, रेडियोधर्मी सामग्री और तकनीकी उपकरणों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटना या आतंकवादी गतिविधि को रोका जा सके।
IAEA की स्थापना का इतिहास:
IAEA की स्थापना का विचार अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर के 1953 में UN जनरल असेंबली में दिए गए "Atoms for Peace" भाषण के बाद आया।
29 जुलाई 1957 को IAEA की स्थापना हुई।
इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र की सहायता से हुई, लेकिन यह एक स्वतंत्र निकाय है।
IAEA की संरचना और कार्यप्रणाली:
IAEA के तीन मुख्य अंग होते हैं:
1. जनरल कॉन्फ्रेंस (General Conference):
इसमें सभी सदस्य देश शामिल होते हैं और यह हर साल बैठक करती है।
2. गवर्निंग बोर्ड (Board of Governors):
यह नीति निर्माण करता है और 35 सदस्य देशों से मिलकर बना होता है।
3. सचिवालय (Secretariat):
इसका नेतृत्व महानिदेशक (Director General) करते हैं, जो एजेंसी की दैनिक गतिविधियों की देखरेख करते हैं।
IAEA के प्रमुख कार्य:
1. निरीक्षण (Inspection):
सदस्य देशों के परमाणु संयंत्रों का निरीक्षण करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे हथियार बनाने की कोशिश नहीं कर रहे।
2. तकनीकी सहायता:
विकासशील देशों को परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग में मदद देना, जैसे – कैंसर की रेडियोथेरेपी, कृषि में रेडिएशन तकनीक, जल की जांच आदि।
3. मानक निर्धारण:
रेडियोधर्मी सामग्री और परमाणु संयंत्रों के लिए सुरक्षा मानक निर्धारित करना।
4. रिपोर्टिंग और विश्लेषण:
विश्व के परमाणु कार्यक्रमों पर रिपोर्ट तैयार करना और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सूचित करना।
IAEA और भारत:
भारत IAEA का सदस्य है और इसके कई कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाता है।
2008 में भारत और अमेरिका के बीच हुए न्यूक्लियर डील (123 एग्रीमेंट) के तहत भारत ने IAEA के साथ Safeguards Agreement साइन किया था। इसके तहत भारत के कुछ परमाणु संयंत्र IAEA की निगरानी में रखे गए हैं ताकि वे केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए उपयोग हों।
IAEA की सीमाएं और चुनौतियाँ:
1. राजनीतिक हस्तक्षेप:
कई बार IAEA के कार्यों को राजनीति से प्रभावित माना गया है।
2. सदस्य देशों का सहयोग:
कुछ देश निरीक्षण की अनुमति नहीं देते जिससे पारदर्शिता में बाधा आती है।
3. फंडिंग की समस्या:
संगठन की वित्तीय निर्भरता सदस्य देशों पर होती है, जिससे कई कार्य सीमित रह जाते हैं।
IAEA के महानिदेशक (2025):
वर्तमान में राफाएल ग्रोसी (Rafael Mariano Grossi) IAEA के महानिदेशक हैं। उन्होंने 2019 में यह पद संभाला।
IAEA वैश्विक स्तर पर परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण और सुरक्षित उपयोग को सुनिश्चित करने वाला एक महत्वपूर्ण संगठन है। यह वैज्ञानिक सहयोग, सुरक्षा मानकों, निरीक्षण और तकनीकी सहायता के माध्यम से दुनिया को परमाणु खतरों से सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
.jpeg)
.jpeg)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें