तिरुपति मंदिर बोर्ड का बड़ा फैसला: अब गैर-हिंदू नहीं पाएंगे मंदिर संस्थानों में नौकरी

भारत के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। अब मंदिर संस्थानों में केवल हिंदू धर्म को मानने वाले अभ्यर्थियों को ही नियुक्त किया जाएगा। गैर-हिंदू कर्मचारी अब नए पदों के लिए पात्र नहीं होंगे, चाहे उनकी योग्यता कुछ भी हो। 
तिरुपति मंदिर बोर्ड का फैसला - अब सिर्फ हिंदुओं को मिलेगी नौकरी
इस निर्णय के बाद पूरे देश में बहस तेज हो गई है, लेकिन साथ ही यह फैसला धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के नजरिए से भी देखा जा रहा है।

सिर्फ हिंदू अभ्यर्थियों को मिलेगी नियुक्ति, TTD ने जारी की नई गाइडलाइन

TTD बोर्ड ने साफ तौर पर निर्देश दिया है कि मंदिर से जुड़े किसी भी संस्थान – जैसे गोशाला, अस्पताल, विद्यालय, कॉलेज या प्रशासनिक कार्यालय – में अब सिर्फ हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों को ही नौकरी दी जाएगी। इसके लिए आवेदन के समय यह स्वघोषणा देनी होगी कि अभ्यर्थी हिंदू हैं और वे मंदिर की आस्था, परंपरा और धार्मिक सिद्धांतों को मानते हैं।
TTD बोर्ड का कहना है कि यह फैसला मंदिर की पवित्रता बनाए रखने और धार्मिक मूल्यों की रक्षा के लिए लिया गया है।

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जो कर्मचारी पहले से नियुक्त हैं उनका क्या होगा? जानिए पूरी जानकारी

सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जो गैर-हिंदू कर्मचारी पहले से मंदिर संस्थानों में कार्यरत हैं, उनका भविष्य क्या होगा?
TTD ने इसपर भी स्पष्ट किया है कि पहले से नियुक्त गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाया नहीं जाएगा, लेकिन उन्हें मंदिर के ‘धार्मिक कार्यों’ से दूर रखा जाएगा। यानी वे प्रशासनिक या तकनीकी पदों पर तो काम कर सकते हैं, लेकिन पूजा-पाठ, अनुष्ठान, प्रसाद वितरण जैसे धार्मिक कार्यों से जुड़े नहीं रहेंगे।
TTD बोर्ड ने कहा कि वे संविधान और मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं, लेकिन धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थाओं की विशिष्टता को बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है।

धार्मिक आस्था और परंपरा के सम्मान में लिया गया निर्णय

TTD के मुताबिक, तिरुपति मंदिर केवल एक संस्था नहीं बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है। ऐसे में वहां काम करने वाला हर व्यक्ति उस धार्मिक भावनाओं का प्रतिनिधि होता है। जब कोई कर्मचारी किसी दूसरे धर्म को मानता है, तो आस्था और सेवा के बीच असमानता आ सकती है। TTD के चेयरमैन ने कहा,

> "हमें यह सुनिश्चित करना है कि भगवान वेंकटेश्वर की सेवा में वही लोग हों, जो उनके प्रति पूरी श्रद्धा और विश्वास रखते हों।"

TTD के इस फैसले पर क्या बोले विशेषज्ञ और धार्मिक नेता?

धार्मिक मामलों के विशेषज्ञों ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि हर धार्मिक संस्था को यह अधिकार है कि वह अपनी परंपराओं के अनुरूप ही कर्मचारियों की नियुक्ति करे।
स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने कहा –

> “यह फैसला बिल्कुल उचित है। जब चर्च या मस्जिद में दूसरे धर्मों को नौकरी नहीं दी जाती, तो हिंदू मंदिरों को भी यह अधिकार होना चाहिए।”

हालांकि, कुछ सामाजिक संगठनों ने इस फैसले को धर्म के आधार पर भेदभाव बताया है। उनका मानना है कि योग्यता को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, धर्म को नहीं।

सुप्रीम कोर्ट और संविधान के तहत कितना जायज है ये फैसला?

भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता और समानता की गारंटी देता है, लेकिन अनुच्छेद 26 धार्मिक संस्थाओं को यह अधिकार देता है कि वे अपने धर्म, परंपरा और प्रबंधन के अनुसार काम कर सकें।
वकील एस. बालाजी कहते हैं:

> “TTD का फैसला संविधान की धारा 26(b) के अंतर्गत पूरी तरह वैध है, क्योंकि यह मंदिर की धार्मिक स्वतंत्रता की श्रेणी में आता है।”

इसलिए कानूनी नजरिए से यह फैसला संवैधानिक और वैध है, लेकिन इसकी सामाजिक स्वीकृति और आलोचना दोनों ही चलती रहेंगी।

परंपरा बनाम आधुनिकता की बहस में धार्मिक संस्थानों की पहचान

तिरुपति मंदिर बोर्ड का यह निर्णय एक नई बहस को जन्म देता है — क्या धार्मिक संस्थाएं आधुनिक संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप चलें या अपनी धार्मिक परंपराओं की रक्षा करें?
इस फैसले से साफ है कि TTD अपने संस्थानों की धार्मिक शुद्धता और हिंदू आस्था की रक्षा को सर्वोपरि मानता है। समय के साथ इस तरह के फैसले भारत की अन्य धार्मिक संस्थाओं के लिए भी एक नजीर बन सकते हैं।

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